लखनऊ के चिकित्सा संस्थानों में आने वाले मरीजों पर निजी अस्पताल संचालकों की नजरें लगी रहती हैं। इमरजेंसी आने वाले मरीज को निजी अस्पताल भेजने का सौदा पांच हजार से 20 हजार रुपये तक में होता है। गेट से मरीज को खिसकाने वाले कर्मचारी को तत्काल एक हजार रुपया मिल जाता है।
कुछ चिकित्सक तो इलाज पर होने वाले कुछ खर्च का 30 फीसदी लेते हैं। अमर उजाला ने रविवार को मरीजों की खरीद के खेल की पड़ताल की तो स्थितियां चौंकाने वाली मिलीं। केजीएमयू ट्रॉमा सेंटर के बाहर मौजूद एंबुलेंस चालकों से बात की गई। खुद को निजी अस्पताल का संचालक बताकर मरीज ले आने का लालच देने पर एंबुलेंस चालकों ने बताया कि ट्रॉमा से निजी अस्पताल मरीज पहुंचाने की एवज में चालक को एक हजार रुपये मिलते हैं।
एंबुलेंस चालकों ने यह भी बताया कि मरीज के तीमारदार डॉक्टर की बात आसानी से समझता है। जिस अस्पताल का नाम डॉक्टर ले लेता है, वहां जाने के लिए वह तैयार हो जाता है। ऐसे में डॉक्टर पांच हजार रुपया तत्काल लेता है। मरीज का इलाज लंबा चलता है और उसके तीमारदार देने की हैसियत में हैं तो यह भाव 20 हजार तक पहुंच जाता है।
सीजन के हिसाब से घटता-बढ़ता है भाव
दिखाते हैं वेंटिलेटर का डर
सूत्रों का कहना है दलाल तीमारदारों को यह कहकर डराते हैं कि वेंटिलेटर के बगैर मरीज चंद घंटों का मेहमान है। यह भी बताते हैं कि केजीएमयू, लोहिया व पीजीआई में वेंटिलेटर नहीं मिलेगा। कई डॉक्टर ऐसे भी हैं, जो अस्पताल का नाम बताने के बाद साथ जाने वाले कर्मचारी का नाम भी बता देते हैं।
10 कर्मचारियों पर निगाह
केजीएमयू से निजी अस्पताल भेजने वाले रेजीडेंट डॉक्टर को निलंबित करने के बाद उसे बर्खास्त करने की तैयारी है। पूरे खेल का खुलासा होने के बाद केजीएमयू प्रशासन ने वर्षों से नाइट ड्यॅटी करने वाले ट्रॉमा सेंटर के 10 कर्मचारियों को रडार पर रखा है। शक है कि नाइट ड्यूटी में ये मरीजों को निजी अस्पताल भेजते हैं।